CHASING THE FOOTPRINTS OF BHAGWAN RAMA : CHITRAKOOT PART Four
सलाम, नमस्ते, केम छू मित्रो???.... कैसे हो आप सब ??...मैं आप का दोस्त, हमदर्द, साथी हाज़िर हूं एक नए ब्लॉग के साथ ,एक नई जगह का वर्णन करने के लिए तो आइएं शुरू करते हैं।
रास्ते कहां ख़त्म होते हैं ज़िंदग़ी के सफ़र में,
मंज़िल तो वहां है जहां ख्वाहिशें थम जाएं।
मंज़िल तो वहां है जहां ख्वाहिशें थम जाएं।
ये शायरी हमारे अभी की स्थिति पर शाठिक बैठती हैं। क्युकी मजिल तो चित्रकूट था ,पर अपना सफ़र बढ़ता ही जा रहा है।
तो बात खत्म हुई थी गुप्त गोदावरी के दर्शन पर । वहा हमने सोचा भगवान दर्शन बहुत हो गया अब थोड़ा चिल मारते हैं। गूगल बाबा के वजह से हमें रीवा के दो फेमस जलप्रपात के बारे में पता चला । मौसम भी सुहाना था और मौसम की एक्सट्रीम कंडीशन में घूमने का स्वाद शायद कुछ और बढ़ जाता है मेरे लिए , या ये कहूं कि कुछ और ज्यादा मौका मिल जाता है घूमने का । तो फिर क्या था घुम्मकड़ परवर्ती अपनी उतेजाना पकड़ने लगी और ये आखंड सत्य है की उतेजाना पर किसी का नियंत्रण नहीं रहा है 🤭 हम ना ना बोलते बोलते रीवा के लिए बस पकड़ लिए। वो कहते है ना,
"किसी भी चीज़ को पूरे दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है"
यह डायलॉग भले ही शाहरुख खान सर ने ओम शांति ओम फिल्म में कहा था, किंतु वास्तविक जीवन में इस डायलॉग की गंभीरता उस दिन समझ आयी । क्योंकि एक बार पुरवा जलप्रपात हमारे मित्र घूमने गए थे और उन्होंने वहां की फोटोज दिखाई थीं। उस दिन मैंने सोचा था की मैं भी जाऊंगा कभी और देखो दोस्तों आज मैं रीवा में हूं।
रीवा पहुंच के हमने पूरे दिन भर के लिए ऑटो बुक किया और निकल लिए अपने मंजिल की तरफ । हमारे ऑटो वाले भईया बहुत ही रंगीन मिजाज़ के थे। वैसे ऑटो वाले भईया थे मुंबई के और जो उन्होंने मुंबईया स्टाइल में हमने एंटरटेन किया क्या बताऊं उनके वो गाना बजाना सफर में , उनका वो रीवा के बारे में और अपने बारे में बताना ऐसा लग रहा था की वो अपने संग ही ट्रिप पर आए हैं। बातों बातों में कब हम पुरवा जलप्रपात पहुंचे हमने पता ही नहीं चला।
गेट पर पहुंचते ही हमें पानी की आवाज आ रही थी। अभी हमने जलप्रपात देखा भी नहीं था आवाज़ सुन कर ही हमारे एक्साइटमेंट का लेवल शिल्पा सेठी मैडम के अंदाज़ में बोलू तो सुपर से ऊपर हो गया था। जब हमने उसे देखा तो सबके मुंह से एक साथ आवाज़ निकली चलो नहाते हैं इसमें। पुरवा जलप्रपात 70 मीटर ऊंचा था। वहा जा के पता चला लोग क्यों बोलते हैं की ये ब्वॉयस स्पॉट हैं वहा बीयर के बहुत सारे बोतल परे हुए थे। बहुत सारे ब्वॉयज का ग्रुप था कोई गाना बाजा रहा था कोई पानी में एन्जॉय कर रहा था। फिर क्या था हम भी कूद पड़े पानी में। लेकिन सबसे कम पानी वाली जगह पर क्योंकि लाले को पानी से डर लगता है अरे यार इस ट्रिप के बाद इसको स्विमिंग सीखना हैं आता तो हम लोगों में से किसी को नहीं है पर इस डरपोक को सीखना जरूरी है। पुरवा जलप्रपात का वियू बहुत ही शानदार था नेचर लवर तो हम हैं ही इसलिए शायद हम लोगों को वो स्पॉट कुछ जादा ही पसंद आ गया था। हम जलप्रपात के बहुत पीछे तक चले गए थे आते आते हमने 1-1.5 घंटे लग गए पानी से,जगल के बीच से ,पत्थर पर चढ के हम गेट तक पहुंचे ऐसा लग रहा था हम किसी ट्रैकिंग पर आए हैं।
वहा से निकाल के हम चचाई जलप्रपात के लिए निकल पड़े पुरवा जलप्रपात का अनुभव इतना अच्छा था की हम बहुत ज्यादा उत्साहित थे उसको देखने के लिए। रास्ते सुन्दर है मंज़िल से भी..... मैैं ऐसा कुछ भी नहीं बोलूंगा क्यों की रास्ता बहुत ज्यादा ख़राब था। जैसे तैसे हम वहा पहुंचे ।पर चचाई हमारी कल्पना से भी ज्यादा शोभायमान था । हम अंतर मुक्त हो गए।
रीवा से उत्तर की ओर 45 कि.मी. सिरमौर तहसील में बीहर नदी द्वारा निर्मित चचाई एक खूबसूरत एवं आकर्षक जलप्रपात है, जो 115 मीटर गहरा एवं 175 मीटर चौड़ा है। बीहर नदी के एक मनोरम घाटी में गिरने से यह प्रपात बनता है। यह एक प्राकृतिक एवं गोलाकार जल प्रपात है।
चचाई रीवा संभाग का सबसे सुन्दरतम प्राकृतिक एवं भौतिक जलप्रपात है। बीहर नदी का उद्गम स्थल सतना जिला की अमरपाटन तहसील का खरमखेड़ा नामक ग्राम है। चचाई ग्राम के निकट इस जल प्रपात के स्थित होने के कारण इसका नाम चचाई जलप्रपात पड़ा।
चचाई का प्रकृति पदत्त और कलात्मक सौन्दर्य बेजोड़ है। जहाँ बीहड़ नदी को अपने आगोश में लेते ही लगभग 500 फुट की ऊँचाई से गिरते ही पानी बिखर कर दूधिया हो जाता है, फलस्वरूप आसपास कोहरे की हल्की झीनी चादर फैल जाती है। सैकड़ों मीटर दूर तक नन्हीं-नन्हीं फुहारों से समूचा वातावरण आनंददायी हो जाता है। ऐसा चमत्कारिक दृश्य कि कोई भी सम्मोहित अपलक देखता ही रह जाय। कुण्ड की अतल गहराईयों से उठने वाला गंभीर-गर्जन, स्वर्णनल धुँध और जल धाराओं से निर्मित सागर मंथन-सा दृश्य उपस्थित करता है जिसकी परछाइयों से उभरता हुआ मध्याह्न का सूर्य उठते हुए अमृत कुंभ-सा दिखाई पड़ता है। बीहर नदी के प्रारंभिक स्वरूप को देखकर सहसा यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि आगे चलकर यह पतली-सी धार इतने विशालतम जलप्रपात का निर्माण करेगी। लेकिन प्रकृति के रचना-संस्कार और मानवीय कल्पनाओं से परे असंभव से संभव हुआ करता है।
चचाई प्रपात के जल तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। अब इसके ऊपर एक जलाशय का निर्माण करके 315 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन टोन्स हाइडल प्रोजेक्ट के माध्यम से किया जा रहा है। स्वार्थवश हमने बिजली पैदा करने के मोह में प्रकृति की इस अनुपम देन के साथ अमानवीय कार्य किया है। टोन्स हाइडल प्रोजेक्टर बनने से पहले यहाँ की खासियत थी कि बारहों महीने नदी में पानी रहता था और चचाई जलप्रपात को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता था, उसका बिखरा सौन्दर्य बरकरार रहता था और बिजली उत्पादन भी पर्याप्त होता था।
चचाई प्रपात के आसपास की भूमि समतल है। इस प्रपात को भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है। यह सदियों का समय साक्षी है जो नैसर्गिक सौन्दर्य की ऊंचाईयों का स्पर्श कर रहा है।
चचाई के नैसर्गिक सौंदर्य को निहारकर ही सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा की तूलिका गा उठी थी-
ओ देख खोल दृग यह प्रपात
य पतन दृष्टि का शुभ हास।
कवि जड़ वर्षा तक सिखलायेगा,
युग को चेतन का रम्य हम्सस।
यहां ठहरने की भी उत्तम व्यवथा हैं। यहां की प्रकृति को देख कर हम इतने खो गए की कब शाम हुआ हमें पता भी नही चला। शाम बहुत ज्यादा हो गया था तो वहां से हम जल्दी निकले स्टेशन की तरफ । तो ऐसे हमरा खूबसूरत सफर ख़तम हुआ।
पढ़ने के लिए धन्यवाद। अपने सुंदर विचारों और रचनात्मक प्रतिक्रिया को साझा करें अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो।
Scene ♥️
ReplyDelete🥰
DeleteWhy??
ReplyDeleteविशाल भैय्या हमको भी आपके साथ ईहा चलना
ReplyDeleteहै।
Bikul sir jb ap bolo
DeleteNice blog.......keep writing.!
ReplyDeleteThanks Bhaisahab
DeleteOsm
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