एशिया का सबसे बड़ा पशुमेला देखना चाहते हैं तो चले आइए "मेरे गांव"
सलाम नमस्ते केम छू दोस्तों 🙏
वैसे तो ये मेरा खुशनसीबी हैं कि इस जगह से मेरा इतना गहरा तालुक है और इसे मुझे अपना गाव कहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। बचपन से कई बार मै वहा गया हूं पर करीब चार साल पहले जब मुझे मेरे गांव उस वक्त जाने का मौका मिला जब सारी दुनिया की नजर मेरे गांव पर होती हैं। खैर उस वक्त तो मैं एक स्टूडेंट था। पर मैंने उस समय ही सोच लिया था कि एक दिन इस पर मैं आर्टिकल या वीडियो शूट जरुर करूंगा। कारोना महामारी को ले कर इस बार ये मुमकिन तो नहीं हो सकता पर मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आप सभी को घर बैठे वाहा की यादे ताज़ा ज़रूर करा सकता हूं।
दो नदियों, गंगा और गंडक की संगमस्थली पर स्थित सोनपुर( यानी की मेरा गांव) की धरती पर कार्तिक पूर्णिमा यानी नवंबर-दिसंबर में लगभग एक महीने के लिए एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता हैं।पशुओं के खरीद-बिक्री का ये स्थान कब पर्यटन के रूप में विकसित हो गया कोई कह नहीं सकता! हालांकि पशुमेले से भी पुराना सोनपुर का पौराणिक महत्व रहा है। इसे हरिहर क्षेत्र भी कहा जाता है जो कि भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है।
हम आपको यहाँ शब्दों में सोनपुर से जोड़ रहे हैं। जाहिर है, ये जगह इतनी मज़ेदार है कि आप पहुँचने की प्लानिंग कर सकते हैं। विदेशी सैलानी भी अगर सर्दियों में भारत घूमने आते हैं तो सोनपुर उनके लिस्ट में ज़रूर होता है। चलिए, आपको सोनपुर से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी दिए देता हूँ!
सोनपुर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
मान्यता है कि भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय किसी शाप के कारण धरती पर पशु के रूप में जन्म लेते हैं। उनमें एक मगरमच्छ (ग्राह) बनता है तो वहीं दूसरा हाथी (गज)। हाथी जब पानी पीने नदी में आता है तो उसे मगरमच्छ जकड़ लेता है। लम्बे समय तक दोनों जूझते रहते हैं और अंत में हाथी भगवान विष्णु को पुकारता है और भगवान अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ को मारकर हाथी की रक्षा करते हैं। इसी समय सभी देवता भक्तवत्सल भगवान की आराधना करने वहाँ आते हैं। इसी सिलसिले में ब्रह्मा जी वहाँ शिव (संहारक) जिन्हें हर भी कहते हैं और विष्णु (पालक) जिन्हें हरि भी कहते हैं, की मूर्ति स्थापित करते हैं। चूंकि भगवान एक समय ही मारने और बचाने का काम करते हैं तो इसे 'हरिहर' की कृपा और इस जगह को हरिहर क्षेत्र घोषित किया जाता है।
दिलचस्प बात ये है कि ये एकमात्र ऐसी जगह है, जहाँ भगवन शिव और विष्णु की मूर्ति एक साथ स्थापित है। बताया जाता है कि इस पौराणिक घटना के बाद ही यहाँ मेला का आयोजन शुरू हो गया। लोग यहाँ धार्मिक यात्राएँ किया करते थे। भगवान राम भी स्वयंवर के लिए मिथिला जाते समय हरिहर स्थान में पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, सिख धर्म के गुरु नानक देव और भगवान् बुद्ध के चरण भी यहाँ पड़े हैं।
इतिहास की बात करें तो चन्द्रगुप्त मौर्य अपने सैनिकों के लिए इसी मेले से हाथी खरीदा करता था। यहाँ तक बताया जाता है कि वीर कुंवर सिंह ने 1857 की लड़ाई में उपयोग किए हाथी-घोड़े इसी मेले से खरीदे थे। पहले ये पशुमेला हाजीपुर में लगा करता था जबकि सोनपुर में हरिहर की पूजा होती थी। मुग़ल शासक औरंगजेब ने पशुमेला सोनपुर में स्थानांतरित किया और तभी से सोनपुर का व्यापक महत्व हो गया।
हाथियों से लेकर चूहे तक की बिक्री
जिस प्रकार राजस्थान का पुष्कर मेला ऊँटों की वजह से फेमस है, उसी तरह सोनपुर हाथियों को लेकर विश्वप्रसिद्ध है। लेकिन ये पशुमेला महज हाथी तक ही सीमित नहीं है। हाथियों के अलावे सभी प्रकार के पालतू पशु-पक्षी यहाँ बिकते हैं और प्रदर्शित किए जाते हैं। बता दें कि लोग पशुओं को बेहतर और विशेष बताने के लिए अजीबोगरीब रूप से सजाते हैं और ग्राहकों को आकर्षित करते हैं।
इस सिलसिले में आपको कुछ ऐसे जीव भी देखने को मिल जाएँगे जो आपको सोनपुर मेले के अलावे कहीं और नहीं मिल सकते। लोग सालभर अपने पशुओं की सेवा इसलिए करते रहते हैं कि सोनपुर में उन्हें अधिक दाम मिल सके। पशुओं के अलावा खेती और कला-संस्कृति से जुड़ी चीजें भी सोनपुर में बिकती हैं। हस्तशिल्प से लेकर पेंटिंग सहित अन्य चीज़ों को भी देख-परख सकते हैं। अब हालांकि सोनपुर पशुमेले के साथ-साथ सांस्कृतिक समागम के रूप में भी जाना जाने लगा है। लिहाजा खरीदार ही नहीं, बल्कि पर्यटक भी मेले में खूब आते हैं।
एक्टिविटीज बटोरती हैं सुर्खियाँ
सोनपुर पशुमेला है, ये तो सब जानते हैं लेकिन अब वैश्विक प्रभाव तथा लोगों की अभिरुचि को देखते हुए यहाँ अनेक एक्टिविटीज की जाती हैं। मेले के समय स्थानीय अखबार इन खबरों से भरी होती हैं। मेले में झूले, खेल-खेलौने, मौत का कुआँ, थियेटर सहित मनोरंजन के इंतजाम भी किए जाते हैं। थियेटर यहां का मुख्य आकर्षण रहता हैं। लगभग 5 से 6 कि.मी. के बड़े क्षेत्र में लगाए जाने वाले इस पशुमेले में नाच-नौटंकी भी देख सकते हैं। हालांकि इसमें अश्लीलता ना रहे, इसके लिए संस्थाएं और सरकार अब मुस्तैद रहती हैं। यहाँ कई प्रकार की प्रतियोगिता भी कराई जाती है जिनमें नौका दौड़ और दंगल भी शामिल हैं। कुल मिलाकर यहाँ पशुमेले के बहाने बिहार की कृषि संस्कृति और लोक संस्कृति की झलक देखने को मिल सकती है। बता दें कि मेले में विदेशी सैलानी खासतौर पर चर्चा में बने होते हैं।
कैसे पहुँचे सोनपुर मेला
सोनपुर राजधानी पटना से सड़क द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। वहीं सोनपुर जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जहाँ से मेला पहुँचा जा सकता है। हालांकि अगर बाहर के प्रान्त से आएँ तो पटना और हाजीपुर रेलवे स्टेशन से पहुँच सकते हैं। पटना हवाई अड्डा से मेले की दूरी 30 कि.मी. बताई जाती है। वहीं टैक्सी बुक कर भी राजधानी पटना या हाजीपुर से आसानी से मेला स्थान पर आ सकते हैं।
Padhkr gav ki yaad aagyi
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