उत्तरप्रदेश में है ये अजीबोगरीब मंदिर, जानिए क्यों होती है यहां मेंढक की पूजा


सलाम नमस्ते केम छू दोस्तों 🙏

आपने भगवान शिव के अनेको मंदिर के बारे में सुना होगा साथ ही आप ने उनके दर्शन भी किए होंगे, लेकिन क्या आप ने एक ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जहां भगवान शिव के साथ - साथ एक मेंढक की भी पूजा होती है। मेंढक की पूजा ये सुनने में काफी अजीब लगता है लेकिन ये बात सच है उत्तर प्रदेश में बने इस मंदिर के अंदर भगवान शिव के साथ एक मेंढक कि भी पूजा होती है।

भारत के अंदर करीब 12 ऐसे मंदिर है जहां भगवान शिव की बहुत मान्यता है और ये भारत के सबसे प्रमुख पवित्र स्थलों में से एक हैं क्योंकि यही से ही भगवान शिव का अस्तित्व शुरू हुआ था। वैसे तो भक्तों ने भगवान शिव के इन 12 प्रमुख स्थलों के दर्शन किए हैं लेकिन अभी भी कुछ स्थानों से लोग अनभिज्ञ हैं। जी हां, लखीमपुर खीरी में भगवान शिव का एक पुराना और भव्य मंदिर हैं जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं। 


इसे कुछ लोग नर्मदेश्वर मंदिर और कुछ लोग मांडुका मंदिर भी कहते हैं। ऐसा मंदिर, जिसे बहुत लोग नहीं जानते, लेकिन अजीबोगरीब चीज़ों की जाँच पड़ताल और रहस्यमयी बातों की जानकारी रखने वालों को तो इस पर ज़रूर ग़ौर करना चाहिए।

मंदिर की कहानी

कहानी शुरू होती है 19वीं सदी से। यहाँ के ज़मींदार राजा बखत सिंह के कोई संतान नहीं थी। इसके इलाज के लिए वो यहाँ के तांत्रिक बाबा के पास गए। बाबा ने बोला कि शिव जी का मंदिर बनवा दो। लेकिन इसके साथ ही कुछ पुरानी प्रथाओं के अनुसार ही इस मंदिर का निर्माण हो सकता था। उन प्रथाओं में एक मेंढक की बलि भी देनी थी। मेंढक को हमेशा से अच्छी क़िस्मत और संप्रभुता का प्रतीक माना जाता है।


उसका बलिदान कर इस मंदिर का निर्माण करवाना था। शिव मंदिर का निर्माण हुआ, जैसा तांत्रिक बाबा ने कहा था, ठीक वैसे। इसीलिए इस मंदिर का मांडुक मंदिर भी कहते हैं।

मंदिर के बनने के कुछ महीनों बाद ही यहाँ की ज़मीन से गन्ने और चावल की फसल लहलहाने लगी।

उस दिन के बाद से ही राज बखत सिंह और उनके बच्चे इस मंदिर की समय समय पर पूजा करने आते रहे। कुछ लोग उनको यहाँ का ज़मींदार नहीं, बल्कि राजा भी बताते हैं।

मंदिर के बारे में

मंदिर का गर्भ गृह कुल 100 फ़ीट ऊँचा है। यहाँ पर आपको सीढ़ियों से जाना होगा। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग है, जो कि तांत्रिक यंत्र के ठीक बीच में है।

यहाँ के स्थानीय लोग बताते हैं कि यह शिवलिंग अपने आप रंग बदलता है। मॉनसून के सीज़न में अगर आप यहाँ पर होंगे, तो लगेगा कि मंदिर पानी के ऊपर तैर रहा है।


मंदिर के अन्दर की दीवारों पर ख़ूब सारी तस्वीरें हैं जबकि बाहर की दीवारों पर नक्काशी से बहुत सारे भगवानों की मूर्तियाँ बनी हैं।



कुछ लोग कहते हैं कि इस मंदिर के बनने के पीछे एक वैज्ञानिक आधार भी है। ऐसा वैज्ञानिक आधार, जिसको अभी तक कोई पता नहीं लगा पाया है।

आज यहाँ पर तांत्रिकों वाले काम तो ख़त्म हो गए हैं, लेकिन अब यहाँ पर शादीशुदा लोग अपने बच्चे की कामना लेकर ज़रूर आते हैं।


आप किसी भी शिव मंदिर में चले जाएँ, वहाँ पर आपको शिव जी के साथ नंदी की मूर्ति ज़रूर मिलेगी। यही अकेला ऐसा मंदिर है, जहाँ पर शिव जी के साथ नंदी नहीं हैं।






कहाँ पर है यह मंदिर

लखनऊ से 120 किमी0 दूर लखीमपुर के एल जगह में यह मंदिर बना हुआ है।

नज़दीकी रेलवे स्टेशन

लखीमपुर खीरी (14 किमी0 दूर)

नज़दीकी हवाई अड्डा

अमौसी हवाई अड्डा (130 किमी0 दूर)


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