' गरड़िया महादेव मंदिर ‘ ना केवल एक धार्मिंक जगह बल्कि प्राक्रतिक सौन्दर्य का एक जीता जागता उदाहरण


कोटा राजस्थान राज्य और चंबल नदी के तट पर स्थित है। इसे राज्य की औद्योगिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह कई प्रमुख बिजली संयंत्रों और उद्योगों का घर है। एशिया का सबसे बड़ा उर्वरक संयंत्र भी कोटा में स्थित है। यह स्थान गुजरात और दिल्ली के बीच व्यापार के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में भी कार्य करता है। कई इंजीनियरिंग कॉलेजों और संस्थानों की उपस्थिति के कारण गंतव्य को राजस्थान के शैक्षिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है।राजस्थान का एक हिस्सा होने के कारण, यह कोटा में कई हवेलियों, महलों, किलों और अन्य पर्यटक आकर्षणों की विशेषता है। इसके अलावा, यहां विभिन्न धार्मिक केंद्र भी हैं जो काफी प्रसिद्ध हैं। गुरुद्वारा आजमगढ़ साहिब, गोदावरी धाम मंदिर, गरड़िया महादेव मंदिर और मथुराधीश मंदिर कोटा के कुछ प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं।आज हम गरड़िया महादेव मंदिर के बारे में बात करेंगे। समुंद्र तल से करीबन 500 फीट की उचाई पर एक तंग घाटी में प्रचंड चम्बल नदी के किनारे पर बना भगवन शिव का ‘ गरड़िया महादेव मंदिर ‘ ना केवल एक धार्मिंक जगह है बल्कि प्राक्रतिक सौन्दर्य का एक जीता जागता उदाहरण भी है।

साल 2016 में राजस्थान टूरिज्म के एक लुभावने एड के जरिये लोगो को गरड़िया महादेव मंदिर से रूबरू कराया गया मै खुद वो एड देखने के बाद इस मंदिर में पहुंचा , लेकिन यंहा आकर दुःख हुआ की लाखो रुपए एड और मार्केटिंग पर खर्च करने के बाद रंगीले राजस्थान की चमक तो दुनियाभर में बिखर गई लेकिन इन जगहों पर पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है ना ही इस जगह तक पहुंचने को एक अच्छी सड़क है।


कोटा का गरड़िया महादेव मंदिर

गरड़िया महादेव मंदिर की यात्रा के बारे में और बताने से पहले इस जगह का एक छोटा सा परिचय आपको दे दू , राजस्थान की शिक्षा नगरी कोटा से बीस किलोमीटर दूर मुकुंदरा हिल्स में स्तिथ गरड़िया महादेव कोटा के मशहूर पिकनिक स्पॉट्स में से एक है , वजह है वो घाटी जहाँ इस मंदिर के सामने से चम्बल नदी पहाड़ो के बीच से निकल कर मैदानों में मिलती है और एक शानदार नजारा देखने को मिलता है . कुल मिला कर एक जगह जो धार्मिक भी है, शांत और प्राक्रतिक सौन्दर्य से भरपूर भी है।


लोग राजस्थान कैम्पेन के गरड़िया महादेव मंदिर के उस लुभावने विडियो को देख कर मचल उठते है और यहां आने के लिए बेचैन होने लगते है, लेकिन दुःख की बात है की इस जगह तक पहुँचने के लिए कोटा शहर आकर भी बार बार पूछना पड़ता है ।राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 76 पर खड़ीपुर के पास एक साइन बोर्ड जरुर है जो की घुमक्कड़ो को कुछ राहत जरुर देता है , लेकिन वो रहत कुछ कदम चलते ही फुर्रर हो जाती है।

साइन बोर्ड से कुछ कदम दूर चलने के बाद ढाई किलोमीटर लम्बी टूटी फूटी सुनसान सड़क को जैसे तैसे पार करके मै गरड़िया महादेव मंदिर के पहले प्रवेश द्वार पर पहुंचा, न बैठने की व्यस्व्स्था न ही कोई गाइड । बस एक टिकेट खिड़की जहाँ वन विभाग के कर्मचारी बैठकर टिकेट बनाते है प्रवेश द्वार जिस जगह पर है उसका नाम है जवाहर सागर नाका, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व जिसके बीचो बिच 1.5 किलोमीटर पैदल चलने के बाद गरड़िया महादेव मंदिर आता है।


टिकट खिड़की से आगे गरड़िया महादेव मंदिर तक लघभग 1.5 किलोमीटर पैदल चलना है या खुद की गाडी से जाना वो निर्भर करता है आपके बजट पे , क्युकी कार अंदर ले जाने के लिए भी टिकट अलग से लेनी पड़ती है. मैंने पैदल जाने का फैसला किया, जंगल के बीचो बिच पैदल जाना एक अलग अनुभव देता है , मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व के जंगल में चलना मेरी कल्पनाओं से बिलकुल अलग था रास्ते के दोनों तरफ पेड़ तो थे लेकिन सूखे और न ही ज्यादा गहरे हाँ रास्ता सुनसान जरुर है कोई इक्की दुक्की पर्यटक की कार जरुर यंहा से गुजरती है कुछ मै दोपहर में भी गया था इसलिए पर्यटक भी कम थे.


अब समझ आ रहा था शायद इसीलिए ये वन विभाग के कर्मचारी पर्यटकों को पैदल जाने देते है क्युकी यंहा और जंगलो की तरह कोई खतरा नही है।



गरडिया महादेव मंदिर की सैर

1.5 किलोमीटर पैदल चलने बाद आँखों के सामने वो घाटी और उसमे बहती चम्बल नदी जो की तलहटी में ओट में चट्टानों से गुफ्तगू करती नजर आती है जिसकी एक झलक ने सारी थकान को दूर कर दिया। चम्बल नदी जो की जनापाव महू से शुरू होकर यमुना में मिलने से पहले राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच सीमा बनाती है । घाटी में खूब तस्वीरे ली समय बिताया लेकिन गरड़िया महादेव मंदिर दिखाई नहीं दिया , कोई बोर्ड भी नहीं न कोई वन विभाग का कर्मचारी , और पर्यटक भी मेरी तरह यही सवाल कर रहे थे ।दूर से एक इंसान आता दिखाई दिया कपड़ो से लग रहा था यही किसी नजदीकी गाँव का है उस से पूछने पर पता चला मंदिर घाटी में थोडा निचे उतर के है ।



पर्यटक काफी संख्या में गरड़िया महादेव मंदिर आते है फिर कोई बोर्ड या गाइड या कोई वन विभाग का कर्मचारी यंहा नियुक्त होना चहिये, जगह एतिहासिक तो नहीं है पर यंहा भी बताने और सुनने के लायक कुछ बाते जरुर होगी , पर्यटकों के मन में कई सवाल होते है जिनका जवाब नहीं मिल पाता।राजस्थान टूरिज्म को यहां इस तरह की व्यवस्था जरुर करनी चहिये।

मै आपको सलाह देना चाहूँगा के आप यंहा शाम को सूर्यास्त के समय से कुछ देर पहले गरड़िया महादेव मंदिर आयें और पैदल ही प्रवेश द्वार से मंदिर तक जाएँ , सूखे वर्क्षो से भरे इस जंगले में थोडा बहुत एक अलग तरह का अनुभव भी मिलता है जो शहर के प्रदूषित और भीड़ भाड भरे माहौल से काफी हटके है । पिकिनिक के लिए आयें तो भोजन पानी की व्यवस्था करके आयें यंहा कोई दूकान, रेस्तरा नहीं है न ही पानी की उचित व्यवस्था । एक और बात अपनी यात्रा का आनंद ऊपर मौजूद मंदिर के पास से ही ले घाटी की तलहटी में जाके नदी में नहाने या घूमने की कल्पना भी न करे ये एक झोखिम भरा कदम साबित हो सकता है जंगली जानवर और मगरमच्छ आपका स्वागत कर सकते है ।



गरड़िया महादेव मंदिर कैसे पहुंचे

मंदिर कोटा-चित्तोड़ हाईवे पर कोटा से बीस किलोमीटर दूर , चित्तोड़गढ़ से 152 किलोमीटर खडीपुर गाँव के पास ढाई किलोमीटर दूर स्तिथ है। आने जाने के लिए कोटा दिल्ली, जयपुर और चित्तोड़ से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है कोटा से खड़ीपुर तक सरकारी बस भी मिल जाती है, या आप कोटा से ऑटो या टैक्सी लेकर भी आ सकते है ।राजमार्ग से मंदिर तक जाने वाली सड़क देखके दोपहिया वाहन से आना सबसे उत्तम लगता है ।मंदिर क्षेत्र में परवेश हेतु वाहन का शुल्क भी अलग से लगता है

गरड़िया महादेव मंदिर के लिए टिकट सुविधाओ के हिसाब से महंगी है इसमें ईको डेव्लोपेमेंट के लिए भी कुछ रुपए शामिल होते है


भारतीय नागरिक – 75 रुपए


विदेशी नागरिक – 500 रुपए


भारतीय छात्र – 20 रुपए


कार / जिप्सी / मिनीबस – 250 रु.


बस – 400 रुपए


दोपहिया वाहन- 30 रुपए


पढ़ने के लिए धन्यवाद। अपने सुंदर विचारों और रचनात्मक प्रतिक्रिया को साझा करें अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो।

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